तुम याद आते हो

तुम याद आते हो 

तुम याद आते हो
शाम के सितारों में नहीं,
तेज़ दोपहरी में।

तुम याद आते हो...
झिझकते बूंदा-बाँदी में नहीं,
तेज़ बारिश में।

तुम याद आते हो...
सपाट-सुलझे रास्तों पर नहीं,
टेढ़े-मेढ़े पगडंडियों पर।

तुम याद आते हो...
खोखली ख्यालों में नहीं,
बेहद गहरे विचारों में।

तुम याद आते हो...
पलटते हुए पन्नों में नहीं,
पढ़ते हुए कहानियों में।

तुम याद आते हो...
लिखते हुए कविता में नहीं,
सुनते हुए ग़ज़ल में।

-गौतम झा

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