राय का पहाड़
राय का पहाड़ बनते सुना है,
समय का दबाव जब बढ़ा है।
राय कभी कहीं ठहरती नहीं,
पर पहाड़ भी तो बदलता नहीं।।
एकांत में जो निवास करे,
अथक अभ्यास का प्रयास करे।
संसार में वही आविष्कार करे,
जो विचारों में गहरा विश्वास भरे।।
चाय से देखो चमत्कार हुआ,
पिछले दशक में लगातार हुआ।
चायवाला, शराबवाला, फ़िजिक्सवाला,
सबका सब बेमिसाल हुआ।।
छप्पन इंच का सीना है,
अक्साई चीन पर जीना है।
बांग्लादेश का हसीना है,
बलूचिस्तान तक नगीना है।।
संसद में सहयोग का प्रयोग है,
समिति में विपक्षी का योग है।
हर फैसले पर गतिरोध है,
जनतंत्र में विरोध का रोग है।।
पढ़ाई से बेरोजगारी बढ़ती है,
शिक्षा की अजीब दुर्गति है।
आवास, राशन, उज्ज्वला योजना,
लाचारी की सारी परियोजना।।
योजनाओं को अगर विकास कहेंगे
सचमुच परिभाषा पर परिहास करेंगे।।
गौतम झा