प्रकृति का स्वरूप
प्रकृति का कोई स्वरूप है
चल अचल का दो ग्रुप है
एक सूरज है जिसका अनोखा धूप है
इससे खिलता अनेक रूप है।
ज़मीन से लगभग साठ मीटर ऊपर
आशियाना सा एक झोपड़
पत्थर का होकर
अचरज सा काम किया...
संगमरमर के बीच
बेहद बारीक - एक लकीर
रिसते, पिसते, घिसते
बालूकणों में रचते बसते
हरा भरा - एक फ़कीर आया
वही! जहाँ बुद्ध को यकीन आया
बरगद का एक पौधा बेहतरीन आया।
पत्थर में प्रकृति का स्वरूप
कण-कण में है अदभुत रूप
कण--कण का भी भगवान होगा?
सरल सुगम कुछ नाम होगा...
पाप पुण्य का विधान होगा
कैसा उसका ब्रह्मधाम होगा
भाषा का कई उपनाम होगा
संस्कृत में बसा परमधाम होगा?
मानवता को कहां ये ध्यान होगा?
मौलिकता का कोई पहचान होगा
प्रायोजित विद्वान का विज्ञान होगा
चर्चा आम होगा, प्रकृति अंजान होगा।
गौतम झा