मक़बूलियत और तनहाई

मक़बूलियत और तनहाई

 

फूल, तारीफ़ें बरसाने वाले मिल जाएँगे,

ढोल, तालियाँ बजाने वाले मिल जाएँगे,

आप-ही-आप हैंका राग गाने वाले मिल जाएँगे,

मतलब की वाहवाही लुटाने वाले मिल जाएँगे,

मुझे चने के झाड़ पे चढ़ाने वाले मिल जाएँगे।

 

मेरी बुलंदी पे जो नम हो आएँ,

मगर, फिर वो आँखें कहाँ से लाएँगे?

 

मेरी कामयाबी की दावतें उड़ाने वाले मिल जाएँगे,

मेरा नाम लेके अपना नाक उठाने वाले मिल जाएँगे,

मेरी हस्ती को हल्के-हल्के भुनाने वाले मिल जाएँगे,

कुछ भूले-बिसरे यार, रिश्तेदार पुराने मिल जाएँगे,

मेरे साथ होने वाले कई ज़माने-वाले मिल जाएँगे,

मेरी ऊँचाई में अपना हिस्सा जताने वाले मिल जाएँगे।

 

जो परखती रहें कि मैं सदा जो था वही रहूँ,

मगर, फिर वो आँखें कहाँ से लाएँगे?

 

ज़िंदगी का हर इम्तिहान पार होने को है, 

लगता है सारा जहाँ मेरा होने को है,

मुमकिन है आसमाँ भी मेरा होने को है,

मक़बूलियत का हर समाँ मेरा होने को है,

वक़त का मेरे इशारे पे चलना भी होने को है।

 

जो दूर खड़ी, नम होकर मुस्कुराती रहें,

मगर, फिर वो आँखें कहाँ से लाएँगे?

फिर वो आँखें कहाँ से लाएँगे?

कहाँ से लाएँगे?

कहाँ से

 

संजीव ढढवाल ‘राज़’

Newsletter

Enter Name
Enter Email
Server Error!
Thank you for subscription.

Leave a Comment

Other Posts

Categories