कसूरवार कौन?

कसूरवार कौन?

दायरों की बंदिशों में बाँधा जिसने,

जहां की उस सुतली पे इल्ज़ाम रखना।

 

ठूँस-ठूँस के जो भरा जाता रहा मुसलसल,

अल्फ़ाज़ों के उस बारूद का हिसाब रखना।

फिर जो उतार दिए गए उसकी हस्ती में,

उन पलीतों का भी ख़याल रखना।

 

तिली रगड़ी, किया खिलवाड़ पलीते से,

ज़बां की इस हरकत का भी ख़याल रखना।

क़सूरवार वो कैसे जो फट गया,

उस इंतज़ाम करने वाले पे भी सवाल रखना।

जहां को बस आवाज़, ताप की तकलीफ़,

हस्ती हुई जिसकी रेशा-रेशा, उससे मलाल रखना।

 

दायरों की बंदिशों में बाँधा जिसने,

जहाँ की उस सुतली पर इल्ज़ाम रखना।

ठूँस-ठूँस कर जो भरा जाता रहा मुसलसल,

अल्फ़ाज़ों के उस बारूद का हिसाब रखना।

 

फिर उतार दिए गए जो उसकी हस्ती में,

उन पलीतों का भी ख़याल रखना।

तिली रगड़ी, किया खिलवाड़ पलीते से,

जुबां की इस हरकत का ख़याल रखना।

 

-संजीव ढढवालराज़

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