एक नदी -दो किनारे
एक नदी के दो किनारे,
समानांतर अपने पथ पर अग्रसर,
उन्मुक्त धाराओं की अटखेलियों से मुग्ध,
चलता स्मारक सा स्पर्श-विहित,
एक आस्तित्व के दो संरक्षक,
ज्ञात-अज्ञात के विषम संवेदना समाहित,
इच्छा आलोक से ज्योतिर्मय,
संभावनाओं सा सजग प्रकृति,
प्रस्फुटित भावों का अरण्यदल,
मानस पटल के कैनवास पर,
निरन्तर चित्रित परिपेक्ष में,
योजनाविहिन आकाक्षाऐं,
धरासायी भीष्म सा चित्त,
सुरक्षा कवच के कक्ष में,
निरन्तर, प्रतिपल,
प्रवाहित हठजोर सा
मुक्त आनन्द,
दो किनारे,
एक नदी।।
-गौतम झा