बेटी

बेटी

सीप मोती सी मेरी बेटी,
नदी सी अल्हड़ और पंछी सी चंचल । 

सावन सी छन-छन,
 करती है बन-ढन ।

शरद-पुर्णिमा सी मधुर-मुस्कान 
नित्य-नूतन अघरो पर गान ।

स्नेह से पली-बढ़ी, 
नव जीवन को उतर चली ।

सुख ही सुख हो समस्त,
तू रहे बस इसी में व्यस्त ।

सरल स्वछंद नभ पथ हो,
उल्लास उपवन सहित जीवन प्रयत्न हो ।

बस! जल-बिन्दू सा बरस निकल जाए, 
तू हो वयस्क, घर स्वस्थ्य आ जाए।

-गौतम झा

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4 Comments

  •  
    Pankaj Kumar
    7 months ago

    Bahut khub...

  •  
    Shyam Jha
    7 months ago

    बहुत प्रेरणाश्रोत

  •  
    Shobha jha
    6 months ago

    Khoobsurat lekhani ❤️❤️????????

  •  
    Shobha jha
    6 months ago

    Khoobsurat lekhani ❤️❤️????????

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