ईमानदारी और तिरस्कार, दोनो साथ चलते हैं।
शक है? तो प्रयोग करके देखो।
श्रोत है, शताब्दीयों का इतिहास।
माफ करना! सोशल मीडिया वंचित है।
दैनिक जीवन से कुछ मिसालें दी जा सकती है।
मसलन- स्त्रियां*
जितनी ईमानदार होती है घर में,
उतनी ही तिरिष्कृत।
दादी के झुर्रियों में पढ़ा जा सकता है,
माँ के व्यस्तता में देखा जा सकता है।
बहन के विक्षोभ में समझा जा सकता है।
पत्नी की दुविधा में महसूस किया जा सकता है।
इसमे साज़िश बौद्धिकता का भी है।
जो हत्या को देशभक्ति और हत्यारा को देशभक्त बनाता है।
यह मिसरा तो आरम्भ से है-
"गोड्से और गांधी"
करोड़ों बेरोज़गार हैं; कोरोना के मार में,
लाखों डूबे हैं; बाढ़ के तिरिष्कार में,
आप व्यस्त हैं; चीन और पाकिस्तान के वॉर में,
हम आश्वास्त हैं; मोर के संसार में।
-गौतम झा