तुम और हम 

तुम और हम 

तुम और हम 

हम सीखा देंगे चलो राह वही,
राह तो राह है चलना भी तुम्हे होगा सही !

अनसुने रह गए हैं कितने अफसाने यहां, 
हम सुनाएंगे फ़साने तमाम जो है अनकही !

दिल के अरमानो को लगे पंख तेरे आने से,
अबके जज़्बात के आलम में हवा ऐसी बही !

कुछ न कुछ तो सबब है तुमसे मिल जाने का,
पर क्या जिसने मिलवाया बस जाने वही !

मिल गया हो जैसे एक मुसाफिर को मुकाम,
तुमसे दामन में मेरी खुशियां हीं खुशियां रही !

-कवि कुमार 'प्रचंड'

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