सुख- दुख
आधा सुख, आधा दुख,
जीवन चांद सा है कुछ–कुछ।
दिन के दहशत से दूर,
रात को है भरपूर।
इसकी आदत की फ़ितूर,
कर रहा है मजबूर।
धक-धक का धुन,
बिलख रहा है शून्य।
रोशनी का नूर,
अंधेरे का कोहिनूर।
फिक्र में सुरूर,
हद भी भरपूर।
दहाई में दोष,
ईकाय में बेहोश।
दिन की दया,
रात की माया।
दिन रात यही है छाया,
दुनिया ऎसी ही है भाया।
-गौतम झा