
मसला
खुशबू हवा में बिखेर कर,
मसला ये फूल कर गया।
जो फिक्रमंद थे वसंत में,
पतझर उसे बेफिक्र कर गया।
बेरोजगारी को तन्हाई खा गई,
सरकार ये कमाल कर गया।
बातें जिसकी दरमियान थी,
अब फासलों में उलझ गई।
रोज़-रोज़ की ये तंगी,
आस्तीन को मैला कर गया।
अब हो भी तो क्या हो,
यही सोच अब घर कर गई।
-गौतम झा
SN Choudhary
10 months agoNice
SN Choudhary
10 months agoNice
Pankaj kumar
10 months agoGajab sandesh