ख्वाब

ख्वाब

ख्वाब

कुछ ख्वाबों को मैंने सबक सिखाया,
सबको एक गाँठ में बाँध के सुलाया। 

बेवजह ही ये तितलियों सी फुदकती थी,
फालतू की ही रौनक फैलाती रहती थी। 

कभी फूल, कभी शहद, कभी बगीचा 
बेमतलब ही सदा इतराती रहती थी। 

मजबूरी मे भी मुकम्मल साथ चाहिए 
दिन ही नही, इसे सारी रात चाहिए।।

-गौतम झा

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