खुशी की बस्ती
खुशी का अहसास तो सबके पास है,
जैसे कोई दूर है और बहुत खास है।।
आपके खुशी के मायनें क्या है?
अजनबी से भरे तो जमानें हैं।
चमक और दमक चाहिए रहने के लिए,
फिर क्या रह गया कुछ कहने के लिए।।
पूछते हैं लोग अक्सर पता खुशी का,
लगता है जैसे जायका हो दुखी का।।
मृगतृष्णा की दौर है यहां वहां
पता नहीं आखिर जाएगा कहाँ कहाँ।।
सुमन और सुगंध का क्या बंधन है?
वही जो मिट्टी और बारिश का अभिनंदन है।।
कुछ बातें ऐसी है जो कुरेदती है
जैसे तन्हाई मासूमियत को खरोचती है।।
कोशिश करो सुनने की अपने मस्ती को,
यही तो चाहिए खुशी की बस्ती को।।
अंकित