कैसा है चाँद?
संज्ञा यह विशेष है,
सार्थक सब संदेश है।
रात में फ़कीर है,
शाम की लकीर है।।
जीवन का भेष नहीं,
उचित परिवेश नहीं।
पानी का अवशेष नहीं,
गहन कोई उद्देश्य नहीं।।
प्यार का आस है,
झूठा सा एक फास है।
ख़ुशनुमा अहसास है,
ऐसा इसमें विश्वास है।।
फूल, पत्ती, रंग, वसंत,
कुछ नहीं इसके संग।
फिर भी 'वो' खुश है
चाँद इसमें निरंकुश है।।
मोदी का विज़न है,
चाँद अब मिशन है।
दक्षिण में शिकन है,
तिरंगा का वहीं मन है।।
चाँद नहीं दूर,
महँगा है जरूर।
भरोसा है 'सरकार'
अबकी बार 'यह भी पार'।।
गौतम झा