जमाना

जमाना

सपना ऐसा हो कि सजाने में जमाना लग जाए
सच हो जाए तो सारे सितारे सिरहाने लग जाए।।

जले, बुझे और फिर राख से फुदक के सुलग जाए
फिर आग ऐसी लगे कि जमाना जल के भुन जाए।।

खिलौना, बचपन, और दीवारें जब पुराने हो जाए
तैयारी रखो, जमाना कहीं आमने सामने हो जाए।।

तय कुछ नहीं है, तमन्नाओं का तराना गाओ
सच्चा सुर लगे, फिर घरानों में जमाना बट जाए।।

रेख़्ता और हिंदवी, दोनों खुसरो ने उपजाई है
इतनी सी बात, आजतक समझ नहीं आई है।

कहना कह गया, सुनना सुन के ठहर गया
फिर ठहर कर जो कहा, जमाना दहल गया।।

सितम हो तो ऐसा हो कि पोर-पोर में मरोड़ आ जाए,
जतन करो तो ऐसा कि जमाना विभोर हो जाए।।

छोड़ो ऐसे कि छोर चारो ओर हो जाए
पकड़ो ऐसे कि जमाना एक ओर हो जाए।।

गौतम झा

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2 Comments

  •  
    Sidd
    4 months ago

    Kammal ka hi...

  •  
    Sidd
    4 months ago

    Kammal ka hi...

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