दीपावली के रंग

दीपावली के रंग

मन-भोग लगाता है कोई, पेट किसी का खाली है। 
मनती भारत में अब भी कुछ, इसी तरह दीवाली है।।

कहीं हजारों बिजली-लट्टू, दिन में भी जगमग करते।
कहीं रौशनी करने जुगनूँ, रातों में टिमटिम करते।।
दीप किसी का तेल बिना ही, रह जाता क्यों खाली है!
मनती भारत में अब भी कुछ, इसी तरह दीवाली है।।

सजी हुई है महफ़िल देखो, झूमें महल अटारी भी।
सुरा-सुन्दरी दोनों थिरके, नयनन चले कटारी भी।।
रात-रात भर देखो चलते, मुजरा और कव्वाली है।
मनती भारत में अब भी कुछ, इसी तरह दीवाली है।। 

पास यहीं कुटिया में सुन लो, क्रन्दन होता है कैसा!
मरणासन बुधिया का बेटा, जिसके पास नहीं पैसा!!
सर को पीट-पीट कर रोती, बुधिया की घरवाली है।
मनती भारत में अब भी कुछ, इसी तरह दीवाली है।।

पाप नशाने मन्दिर जाते, थाल सजा कर मेवा का।
धूप-पुष्प अक्षत ले आते, पुण्य कमाने सेवा का।।
पण्डित जी भिजवा देते हैं, अपने घर वो थाली है।
मनती भारत में अब भी कुछ, इसी तरह दीवाली है।।

अठखेली कहीं करे बुढ़ापा, मस्त रहे रँग-रलियों में।
कहीं तड़पती रहे जवानी, बदनामी की गलियों में।।
एक है इनकी भी दीवाली, उनकी भी दीवाली है।
मनती भारत में अब भी कुछ, इसी तरह दीवाली है।।

विश्वजीत शर्मा 'सागर'

 

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