बेटी
सीप मोती सी मेरी बेटी,
नदी सी अल्हड़ और पंछी सी चंचल ।
सावन सी छन-छन,
करती है बन-ढन ।
शरद-पुर्णिमा सी मधुर-मुस्कान
नित्य-नूतन अघरो पर गान ।
स्नेह से पली-बढ़ी,
नव जीवन को उतर चली ।
सुख ही सुख हो समस्त,
तू रहे बस इसी में व्यस्त ।
सरल स्वछंद नभ पथ हो,
उल्लास उपवन सहित जीवन प्रयत्न हो ।
बस! जल-बिन्दू सा बरस निकल जाए,
तू हो वयस्क, घर स्वस्थ्य आ जाए।
-गौतम झा
Pankaj Kumar
7 months agoBahut khub...
Shyam Jha
6 months agoबहुत प्रेरणाश्रोत
Shobha jha
6 months agoKhoobsurat lekhani ❤️❤️????????
Shobha jha
6 months agoKhoobsurat lekhani ❤️❤️????????