बातों-बातों में

बातों-बातों में

नशे की बात हो,
और जिक्र चाय की न हो,
संगीन है।

फूलों का बगीचा हो,
और खुशबू गायब हो,
रहस्यमय है।

रात गहरी हो,
औऱ बात तुम्हारी न हो,
अकेलापन है।

संबंध पर विचार हो,
और लगाव का अभाव हो,
अलगाव है।

संघर्ष भरा जीवन हो,
और पाने की चाह न हो,
निरर्थक है।

राज्य का संचालन हो,
और निष्ठा में स्पष्टता न हो,
कूटनीति है।

सवाल अधिकार का हो,
और बुनियादी संवेदना न हो,
आंदोलन है।

धर्म की राग हो,
और सहिष्णुता का अनुदान न हो,
धर्मान्ध है।

हम लिखे,
और आप पढ़े नहीं,
गमगीन नज़रअंदाज़ है।

-गौतम झा

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