बातों-बातों में
नशे की बात हो,
और जिक्र चाय की न हो,
संगीन है।
फूलों का बगीचा हो,
और खुशबू गायब हो,
रहस्यमय है।
रात गहरी हो,
औऱ बात तुम्हारी न हो,
अकेलापन है।
संबंध पर विचार हो,
और लगाव का अभाव हो,
अलगाव है।
संघर्ष भरा जीवन हो,
और पाने की चाह न हो,
निरर्थक है।
राज्य का संचालन हो,
और निष्ठा में स्पष्टता न हो,
कूटनीति है।
सवाल अधिकार का हो,
और बुनियादी संवेदना न हो,
आंदोलन है।
धर्म की राग हो,
और सहिष्णुता का अनुदान न हो,
धर्मान्ध है।
हम लिखे,
और आप पढ़े नहीं,
गमगीन नज़रअंदाज़ है।
-गौतम झा
Pankaj Kumar
6 months agoYe toh gajab ka hai
Gunja
6 months agoAwesome!