
बच्चे वीर जवानों के
भारत माँ पर जब भी आतंकी साया मंडराता है,
पापा की हर छुट्टी एक फ़ोन निगल जाता है।
दिन हो या रात, झट वर्दी पहन हो जाते हैं तैयार,
और आँखों में छोड़ जाते हैं मिलन की अश्रुधार।
हमें देखकर मुस्कुराते, कहते—"जल्दी लौट आऊँगा,
सरहद पर दुश्मन खड़ा है, उसे अब भगाऊँगा!"
मुख्य द्वार तक आते-आते आँखें भर आती हैं,
गले रुंध जाते हैं, फिर कहते—"अब चलते हैं हम!"
माँ आगे बढ़कर चरणों की मिट्टी माथे से लगाती,
दादी कहती—"जल्दी आएगा, तू क्यों घबराती?"
फिर सब लौट आते हैं, घर में पसरा सूनापन,
कमरे में जाकर मन को रोक रखा जो, बहता है वह सावन।
रोता देख दादा जी पास आकर समझाते,
"पापा जाते हैं, जब माँ भारत पर बादल छाते।"
उस दिन के बाद आँसू को मैंने हथियार बना लिया,
देश की सेवा में पापा हैं, यही सोचकर मन को मना लिया।
फिर एक दिन सुबह फ़ोन आया, सन्नाटा-सा छा गया,
मैंने कहा—"अब मेरी बारी है, भारत माँ ने बुलाया!"
-कवि कुमार 'प्रचंड'