अस्मिता 'मैं' का
अस्मिता 'मैं' का, विमर्श में तय होने लगा,
किरदार किसी का, कहानी किसी की, समीक्षा में मूल्य होने लगा।।
संसाधन से सुविधा का होना व्याप्त है,
अभाव से बना श्रीराम सेतू क्यो अज्ञात है।।
लघु के बिना दीर्घ का क्या औकात है?
सहजता में ही मर्यादा पर्याप्त है।।
वीर में धैर्य का ही मान है,
सम्मान में नहीं कोई आन है।।
विश्वास ही धर्म का आधार है,
सौहार्द से इसका विस्तार है।।
कण-कण में ईश्वर है
निर्जीव क्यों नश्वर है।।
आत्मा परमात्मा का इकाई है,
फिर धर्मात्मा की क्यों दुहाई है।।
-गौतम झा