अनुकूल-अनुसरण

अनुकूल-अनुसरण

अर्थ, मान, यश गर पाना हो
तब ठाकुर तुम्हारा ठिकाना हो
सावधान हो जाओ भक्त-सकल
ठगे जाओगे सत्संग में आकर।।

भारत के अवनीति का आरम्भ हुआ
भौतिकता का जब प्रारम्भ हुआ
वाणिज्यवाद का जब तुम आसक्त हुए
ऋषि छोड़कर रूढ़िवाद का भक्त हुए।।

दुर्बलता से युद्ध लड़ना होगा
साहसी वीर तुम्हें बनना होगा
निर्बलता से पाप पनपता है
रक्त में अवसाद का दाव बढ़ता है।।

परमपिता के संतान हो
मौलिकता में प्रधान हो
शक्ति का अनुसंधान करो
धर्म पर ध्यान धरो।।

मन-मुख जब एक न होते
पाप-पूण्य में कोई भेद न होते
विफलता से घबराओ नहीं
दुर्बलता को अपनाओ नहीं।।

दुर्बल मन संदिग्ध है
चिरकाल से प्रसिद्ध है
चेष्टा बारम्बार करो
विफलता पर प्रहार करो।।

जीवन ज्वालामय है
अंतर्मन में कलह है
इन्द्रियों को वश में करो
प्रेम-शक्ति से विवश करो।।

दुर्दशा, व्यथा, आशंका और अपराध
दुर्बलताओं के कारक हैं ये चार
सख्ती और शक्ति से हटाना होगा
सबल हृदय का दृष्टांत सुनाना होगा।।

कामिनी-कञ्चन की आसक्ति जब हटती है
भक्ति का रास-रंग मन में चढ़ती है
श्री श्री ठाकुर ने आगाह किया है
भाव-भक्ति से अमृत का प्रवाह हुआ है।।

गौतम झा

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2 Comments

  •  
    Gunja
    2 months ago

    जय गुरू🙏🙏💐

  •  
    pk
    2 months ago

    जय गुरु

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