अंतिम पड़ाव
अगर मूल्य जुड़ गया हो,
स्नेह भी पक गया हो,
संवेदना शुष्क हो गया हो,
तेवर थम गया हो,
खुद को अश्वस्त कर लो,
मार्ग प्रशस्त कर लो।।
अतिथी हो तुम धरा के,
संदेश को स्वस्थ्य कर लो।
ध्वस्त से गंतव्य की ओर,
संभावना को श्रेष्ठ कर लो।।
जीवन का मोह नश्वर है,
बाकी सब ईश्वर है।।
शून्य का संधान करो,
गंतव्य को प्रस्थान करो।।
-गौतम झा