अभेद्य-अनुराग
अनन्त आकांक्षाओ के आकाश में,
अघटित अल्प अतीत अनुराग रहा।
अविरल असीम अहम है अभी,
अधीर आनंद- अचल अटल है सभी।
अवसर के अनुमोदन के अवकाश सहित,
असफल अतिरिक्त अभ्यास रहा।
अनुशंसा का अनुनय अभाज्य रहा,
अभेद, अभिन्न, अकसर आचार रहा।
अवसाद का अनल अंगार,
अनुभूति के आवेग से अविकार रहा।
अर्थ अभिनय के अकाट्य से,
असहज अनुराग अभेद्य रहा।
असमंजस का आधार-आकार,
आरम्भ से आयताकार रहा।
आदि अभिशाप अलिप्त 'अनुराग'
आनंदविहीन आंगन अनुसार रहा।
-गौतम झा